GRHWALI POEM ''सगैर''
सगैर ------ भैर निरभगी बरखा बौलैणी, भितर मन म्यारु झूरि गे. दिन-रात लग्या छन सगैर, आँख्यूँ की निंद नी पूरि ह्वे. डाली-बोट्यूँ की टुटणा की आवाज़, निरभागी स्वाड़ा मेरू प्राण डरै गे. उड़ गेन धुरपालि की फटाली, आज डैर मेरा साँसा थै हरै गे. हे ! निरभगी चाल न चमsक, कखि मेरी आँखीं न फूटी जै. सरगा दिदा तेरी गिगड़तल्यूँ नs, मेरा नौना-बालों की नींद टुटी गे. नौना-बाला छाति मा चिपकी की, तेरा रूप देखी भारि डैरि गे. डाराणू छ रौला-गदन्यौं कू स्वींसाट, गाड कित्गा मथी सैरि गे. हे ! नरसिंग ठाकुर कख छाँ ? हे ! नागर्जा हमथै बचावा. स्वाड़ा, बरखा, चाल, गिगड़तल्यूँ थै, हे ! पितृ देवतों अब रोकि द्यावा. Copyright © सतीश रावत 16/07/2016 Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand; Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ; Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems,