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Showing posts from July, 2017

TERCET-THREE LINES GARHWALI POEMS (91-95)

---91--- द्वी आँसु सुख द्वी आँसु दुःख सुख-दुख मा जीवन सुख Copyright © सतीश रावत 03/09/2016 ---92--- म्यारा नौना नऽ बसयाल परिवार बणऽयाल राशन-कार्ड सदस्य- वू , वेकि ब्वारि अर मेरी नातिण Copyright © सतीश रावत 03/09/2016 ---93--- उळझ्यूँ धागू इन न तोड़ा ममत्याणा छाँ कुछ करणा कु तऽ यीं उळझ्यीं गेड़ खोला. Copyright © सतीश रावत 05/09/2016 ---94--- सितराज का फूल इगास-बग्वाळ गौड़ि कु व्रत Copyright © सतीश रावत 06/09/2016 ---95--- लूण-रुट्ठि डाळा टुक्कु होटलूँ कु खाणु फीकु खुट्टा सातौं आसमान पर Copyright © सतीश रावत 06/09/2016 TERCET - THREE LINES GARHWALI POEMS, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems,  Sociopoli

GARHWALI POEM ''फर्ज''

फर्ज -----   फूलूँ तैं त्वाड़ा न, खिलण द्यावा वूँ तैं भि अपणौ दगड़ जिन्दगी अपणि जीण द्यावा.   हमन बणऽयीन कानून अपणि सुरक्षा खुण भौत  यूँ सीधा-साधा सजीवूँ तैं भि जीण द्यावा.   किलै चितौला हम सब्बि चीजूँ पर अपणु हक ? जु राजि-खुसि जीणू वे तैं भि जीण द्यावा.   दुनियै दौड़-भाग मा रेगिस्तान-सि ह्वे ग्याँ हम  द्वी घड़ि सीधि-साधि प्रकृति दगड़ तऽ बितावा.   कीड़ा-मक्वड़ा भी स्वाणा रँदिन भौत  एक नजर टक्क लगैकि देखि तऽ द्यावा.   अधिकारूँऽ बात करदाँ बिन्डि, फर्ज कु निभालू ? आशीर्वादै एक डाळि नयी पीढ़ी खुण लगै द्यावा.   Copyright © सतीश रावत  31/01/2017 Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems,  Sociopoliti

HINDI POEM ''पंक और पंकज''

पंक और पंकज   ------------- अरे ओ अरविन्द ! क्यों छाती फैलाकर इठलाता है ? उठ क्या गया कीचड़ से कि , शाश्वत सत्य को झुठलाता है ! अरे ! पंक में ही तू पला बढ़ा   और आज आधार बनाकर , उसी में है खड़ा   अरे ओ ! अगर आज वो न होता तो , सड़ता तू भी पड़ा - पड़ा   चल बे जा   आज बनता है बड़ा ! चूसकर ही रक्त उसका   रक्त - सा रक्तिम बना   अरे ओ ! कोमल कमल ! तू क्या जाने स्वेद क्या है   क्या कभी उसमे सना ? गर्व कैसा , क्या है तेरे पास अपने ? लूट के जिया और   उधार लेकर जी रहा   मुफ्त में किरणों की मेरी अमृत धारा पी रहा   बड़ा इठलाता है दिवस में ओ नासमझ ! है दम जरा तो निशा में भी इठलाकर दिखा   भूल मत उस पंक की सौरभ ने ही   अस्तित्व तेरा है लिखा .   Copyright © सतीश रावत   09/12/2001 Hindi Poems, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Soc

TERCET-THREE LINES GARHWALI POEMS (86-90)

---86--- सुख की खोज सुख ग्या सुख सुख नि मौळ Copyright © सतीश रावत 25/08/2016 ---87--- भैरऽ  कु बाटू साफ ह्वे ग्यायी भीतरऽ कु बाटू मैले ग्यायी गुज्यरु त उनि-कू-उनि रै ग्यायी Copyright © सतीश रावत 26/08/2016 ---88--- मि आम ही ठीक छौं नि हर्चाण चाणू छौं मिठास नि बणण चाणू छौं खास Copyright © सतीश रावत 03/09/2016 ---89--- इखुलि नि छ्वाडा दानौं थैं टैम छ लेल्या आशीर्वाद बाद मा ही आँद औंळा कु स्वाद Copyright © सतीश रावत 03/09/2016 ---90--- कन आँद दिन कन जाँद बार-त्योहारूँ कु पता नि राँद छुटि-सी जिन्दगी कमरा पुटुग कटे जाँद Copyright © सतीश रावत 03/09/2016 TERCET - THREE LINES GARHWALI POEMS, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakh

GARHWALI POEM ''टौफ्यूँऽ डाळि''

टौफ्यूँऽ डाळि -------------- कित्गा खुज्याई पर कखि नि पाई  व टौफ्यूँऽ डाळि ज्व तुमऽरि छा लगऽयी  चौका तीर सग्वड़ा मा ;   जीं डाळि भटी लाँदा छा तुम  रंगलि-पिंगळि टौफि  अर बुल्दा छा कि - अबि डाळि छुट्टि छ  जब बड़ि ह्वे जाली  तब बिंडि-बिंडि लौलु ;   तुम बुल्दा छा कि - आज डाळि इत्गा बड़ि ह्वे ग्या, आज जरा और बड़ि ह्वे ग्या, आज झपन्यळि ह्वे ग्या, अब बिंडि टौफि आण बैठ गेन;   जरा-जरा कैकि डाळि ज्वान  अर तुम बुड्या हूँणा रँया  अब नि दिखेंदा तुम  आँदा-जाँदा, बाटौं मा;   आँदा-जाँदा बाटा भटी  सदऽनी दिखणूँ राँदु  तुमऽरा गुठ्यारा तीरौ सग्वडु  यीं आस मा कि  कबि त दिख्येला तुम अर तुमऽरि लगऽयी  टौफ्यूँऽ डाळि.   Copyright © सतीश रावत  08/01/2017 Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirica