गढ़वळि कविता, -36- गौं कित्गा बदलेगे
-36- गौं कित्गा बदलेगे --------------- अब तऽ गौंऊँ मा भि व बात नि रैगे, पैलि जन भै-भयात व मनख्यात नि रैगे. उपरि-उपरि-सि दिखेणा छन लोग-बाग, नै जमऽनै सका-सैर्यूंऽ कन औडुळ ऐगे. माटा मनखीऽ सिक्कि चुप्फा मा धरी छन, हिरणू मथी-मथि, माटा से एलर्जी ह्वेगे. बड़ा मनख्यूँ तैं दिखाणै जरूरत नि पुड़द, द्वी कौड़ीऽ अफुतैं धन्नासेठ चितैगे. अफुतैं भलु बताणौ, करणू औरूँ काट, मूर्ख बिना सोच-समझी भकलौंण मा ऐगे. प्रकृतीऽ प्यारा मनखी क्य ह्वा त्वे तैं, मॉडर्न बणणा चक्कर मा बौळ्या ह्वेगे. प्रकृति तऽ छ पैलि जन हि स्वाणि, मनखी मन म्वासु-सि झणि किलै ह्वेगे. सुचुदु छा गौं दूर ह्वाला दिखावा से, पर अब दिखदु कि गौं कित्गा बदलेगे. Copyright © सतीश रावत 12/06/2017 Tags for Poems, Garhwali - गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satish Rawat, सतीश रावत, नौड़ियाल गाँव, कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, भारत, Satish Rawat