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Showing posts from May, 2020

GARHWALI HAIKU (71-75)

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नयु जीवन  धरति कि खुचलि  निर्दयी लोग  Copyright © सतीश रावत  27/03/2020   ब्यखुनी टैम  भैर ह्वा छिबड़ाट  द्याख त क्वी ना    Copyright © सतीश रावत  28/03/2020   स्वाणु मुलुक  छपछपि फटऽळि  पुतरु ढुंगु  Copyright © सतीश रावत  28/03/2020    सियीं जिकुड़ि  सुपन्यों कि घंडुलि  उणिंदि आंखि  Copyright © सतीश रावत  28/03/2020    सोळि, तिपत्ति..." साहित्य मा प्रकृति  शब्दूं कि खाण  Copyright © सतीश रावत  29/03/2020 _________________________________________________ Garhwali Haiku, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems,  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Folk Songs , verses from R

पहाड़ छूणा छन आसमान (गढ़वळि कविता)

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पहाड़ छूणा छन आसमान   पहाड़ छूणा छन आसमान अर पहाड़ूं कऽ चुप्फौं पर घैंट्या छन बिजलि कऽ टावर दैत्याकार बंध्या छन एक-दुसरा से म्वाटा-म्वाटा तारूं नऽ तारूं कऽ पुटुग बौगणा छन आंसु दिखेणा छन खालि गौं लगातार मथि खबेस-सि ऐडा़णा छन यु ताकतवर तार ताळ बौगणा छन एक ही रंग का दुन्या भरा सुपन्या काजोळ पाणि मा ज्यूंदा सुपन्या आपस मा टकराणा छन अर दूर छिटगे जाणा छन मुर्यां सुपन्या कोशिश करणा छन बिजलि कऽ तारूं कऽ पुटुग बौगदा आंसू तैं फुंजणऽ कि पर आंसु ज्यूंदा सुपन्यों तैं खुज्याणा छन अर ज्यूंदा सुपन्या टकराण से फुरसत हि नि पाणा छन भौत लंबु सफर तय करियाल बिजलि कऽ तारूं न उचि-निसि अर सैंणि सैरि दुनिया देख्याल अब पहाड़ कऽ खुटौं मा ऐ गेन बिजलि कऽ टावर अर पहाड़ अभि बि छूणा छन आसमान. Copyright © सतीश रावत 10/05/2020

पुस्तक परिचय, कविता संग्रै - "ढांगा से साक्षात्कार", कवि—श्री नेत्र सिंह असवाल

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पुस्तक परिचय  काव्य पोथि (कविता संग्रै)— ढांगा से साक्षात्कार कवि— श्री नेत्र सिंह असवाल  श्री नेत्र सिंह असवाल कि काव्य पोथि (कविता संग्रै) " ढांगा से साक्षात्कार " फरवरी 1988 मा दिल्ली मा गढ़वाल़ी साहित्य की प्रमुख संस्था ' गढ़भारती' द्वारा प्रकाशित ह्वा.  ये गढ़वाळि काव्य संग्रह मा 7 गीत, 9 ग़ज़ल अर 12 कविता छन.  यीं पुस्तक की भूमिका राजेंद्र धस्माना जी कि लिखीं छ.  कवि तैं अपणि जन्मभूमि से भौत प्यार छ.  वु पहाड़ूं कि पिड़ा पछ्यणदा छन. वु लिखदन— " मुंडनिखोलू करिगीं बगतल्, ऊ भगत त्यरा तरि गईं जौंकि दुय्या जगा टंगड़ी, ऊँकि अकला़कण्ड जी।" पलायन का कारण पहाड़ की दशा पर कवि चिंतित छन, जौं का बाना इतगा दुख-दर्द सैन वु लोग प्रवासी ह्वे गेन.  कवि लिखदन— "गीत प्रवासी ह्वे गैन उकली़ लग बँसुली़ ! जौं गीतु का बानऽ थमली़ खाया जिकुड़ी पर सैं, नौ-नौ दूँला़ जाज का पंछी ऊ, आला कभि न कभीऽऽऽ रो न चुचि पगली! उकली़ लग बँसुली़!" पहाड़ कु पाणि बौगि जांद, पहाड़ का काम नि आंद.  पहाड़ का लोग पाणि खुण तरस जंदिन अर

एक ही चश्मा (गढ़वळि कविता)

एक ही चश्मा जीवन-द्वी सच—उज्यळु, अंध्यरु, अलग नि छन, द्विया ही जीवन. जीवन क्य ज्याई? यूं तैं ही त जिंद्वां हम, हासिल क्य पाई? अगना-पिछना यूंका जीवन खप ग्याई.  तीन दगड़्या—उज्यळु, अंध्यरु अर मनखि, जीवन—यूंकु दगड़ु. अफु खुण पसंद करद मनखि उज्यळु,  हैंकौं खुण अंध्यरु. चमकाणू रांद उज्यळु अंध्यरऽ तैं. अंध्यरु मुंज्याणू रांद म्वासा का कुसिनऽ नऽ मनखि कि मुखड़ि, अफु पर लगी नौण देखि कि खुश होणू रांद मनखि.  ज्यूंदा छन अज्यूं भि कई अंध्यरा जु बेर-अबेर लगाणा रंदिन कचाग— सूरज कि स्यूंद मा, नीला अगास मा लगै देंदन खून का दाग.  राक्षस आँखा घुर्याणा छन, राक्षसी फंसाणऽ कि योजना का जाळ बुणणी छन, पागल कुकुरूं तैं यु बड़ा-बड़ा हडगा चुसाणा छन अर मनख्यूं पर छुल्याणा छन, यु खुला आम प्रकृति का नियम-कानूनूं तैं नंगु नाच दिखाणा छन, मनख्यूं तैं डराणा, गलत फैदा उठणा छन, अर अपणु साम्राज्य बढ़ांदा हि जाणा छन.  अछ्यणऽ मा राखी बंसुलऽ नऽ कटणू छ अंध्यरु कुट-कुट मनखि कि कुंगळि अंगुळ्यूं तैं, हर्बि लछणू छ, हर्बि रंदा चलाणू छ हर्बि अपणा अंगुळौं नऽ नपणू छ कुंगळि ल्वेखाळ अं

GARHWALI HAIKU (76-80)

एक समाज  बनि-बनि का लोग  छक्वे विषय  Copyright © सतीश रावत  29/03/2020   आँख्यूं कि पिड़ा  आंशू भि चितै गेन  भैर नि ऐन  Copyright © सतीश रावत  29/03/2020   फूलूं  कि चौंठि  म्वारौं का स्वाणा गीत  स्वर्ग यखी छ  Copyright © सतीश रावत  31/03/2020   हिंसरा कांडा  छुडण नि चांदन  भिटे जांदन  Copyright © सतीश रावत  31/03/2020   घाम बुलांद चखुलि धै लगांद रात ह्वे जांद Copyright © सतीश रावत 31/03/2020 Garhwali Haiku, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems,  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Folk Songs , verses from Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from T

The memory of old eyes

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English translation by Satish Rawat of the Garhwali story " Budhadi Aankhyun Ki Khud " written by Satish Rawat, published in the July 2004 issue of "Yugavani" Hindi monthly magazine. Original Story: " Budhri Ankhyun Ki Khud " Language: Garhwali Author: Satish Rawat English Conversion: Satish Rawat The memory of old eyes --------------------------------------- High mountains are covered with fog.  It looks like heaven has come to the earth.  These rainy clouds sometimes cover the entire earth, sometimes are scattered here and there like broken beads and sometimes it starts blowing and raining in heaven. The higher the height of these clouds, the higher are their thoughts.  It comes only one month in a year.  Month of spring.  Month of memories.  Even this month, they do not think of themselves, they keep raining for others. Along with our earth, it makes our hearts green as well.  These clouds of memories remin

गढ़वाली भाषा से हिंदी भाषा में अनूदित कहानियां

"युगवाणी" हिन्दी मासिक पत्रिका के जुलाई, 2004 के अंक में प्रकाशित, सतीश रावत की गढ़वाली कहानी "बुढड़ि आँख्यूं कि खुद" का सतीश रावत द्वारा हिंदी रूपांतरण. मूल कहानी : "बुढड़ि आँख्यूं कि खुद" भाषा : गढ़वाली लेखक : सतीश रावत हिंदी रूपांतरण : सतीश रावत  बूढ़ी आंखों की याद -------------------------- ऊंचे-ऊंचे पर्वत कोहरे से ढके हुए हैं.  ऐसा लग रहा है जैसे स्वर्ग धरती पर आ गया हो.  ये बरसाती बादल कभी पूरी धरती को ढक देते हैं, कभी टूटी माला के दानों जैसे इधर-उधर बिखर जाते हैं और कभी स्वर्ग में उड़कर बरसने लगते हैं.  ये बादल जितनी ऊंचाई में रहते हैं, उतने ही ऊंचे इनके विचार भी रहते हैं.  साल में एक ही  महीना तो आता है इनका.   सावन का महीना.   यादों का महीना.  इस महीने भी ये अपनी नहीं सोचते,  दूसरों के लिए बरसते रहते हैं.  ये हमारी धरती के साथ-साथ  हमारे हृदयों को भी हरा-भरा  बना देते हैं.   ये यादों के बादल अपने-परायों की याद दिला देते हैं.   बच्चों को अपने खेलों की याद आने लगती है, युवाओं को अपने दोस्तों की याद सताने लगती है,