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गढ़वळि कविता, -61-, एक

  -61-   एक  ----- सब कुछ त समाहित छ एक मा  एक से मथि क्या छ !  ज्ञान, विज्ञान अर सैरु संसार  क्या एक से अलग छ !    जु दिखेणू छ प्रत्यक्ष  या जैकु हमतैं अहसास होंद  या जै तैं हम महसूस ही नि कर सकदां  वु सब क्या छ !    कबि बदल जंदिन भौगोलिक स्थिति  अर कबि बदल जंदिन भौतिक रूप  कबि सांख्यिकीय आंकड़ौं कि व्याख्या करे जांद  अपणा-अपणा अनुसार  अर कबि प्रतिशत का जाळ मा फंसये जंदिन  भोला-भाला मनखी    कबि मनखी तैं बतये जांद एक से अलग  कबि गणित से मथि भि होंद गणना  कबि एक जमा एक बराबर होंद एक  कबि एक घटा एक बराबर भी एक होंद. Copyright © सतीश रावत   09/03/2020 Tags for Poems, Garhwali - गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satish Rawat, सतीश रावत, नौड़ियाल गाँव, कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, भारत, Satish Rawat, Nauriyal Gaon, Kapholsyun, Pauri Garhwal, Uttarakhand, India, गढ़वळि स