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GARHWALI HAIKU (61-65)

-61- सूना-सि भैला यादूँ कि किसराण कै तैं बिंगाण Copyright © सतीश रावत 08/12/2019  -62- स्वाणु पहाड़ मैदान धनवान सुपन्या ज्वान Copyright © सतीश रावत 08/12/2019 -63- ह्यूंदऽ का दिन भटूँ कु तिबड़ाट चा का गिलास Copyright © सतीश रावत 16/12/2019 -64- घाम दिबता मयळदु जिकुड़ि रीति अंज्वाळ Copyright © सतीश रावत 18/12/2019 -65- सच्चि दगड़्या  मजबूत आधार  स्वाणि किताब  Copyright © सतीश रावत  12/01/2020 Garhwali Haiku, Sociopolitical Satirical, Current Event depicting,  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Garhwal, Uttarakhand;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Pauri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Chamoli Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems,  Sociopolitical Satirical, Current Event depicting, Folk Songs , verses from Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand ;  Garhwali Poems, Folk Songs , verses from Tehri Garhwal, Uttarakhand ;  Sociopolitical

डाळि मनख्यूं कु बच्याणु सुणणी रांद

  भाषा  ------- डाळि मनख्यूं कु बच्याणु सुणणी रांद  जित्गा मनखि उत्गा बात  जन मनखि उन बात   डाळि सभ्यूं का सुख-दुख मा शामिल होंद  व बच्यांद मनख्यूं दगड़  पर मनखि नि बींगि सकदु वींकि भाषा    व बच्यांद —  चखुलि, हवा, गौड़ि-बाछि अर डांडि-कांठ्यूं दगड़  व बुल्द —  म्यारु रैबार पौंछै दिंया मनख्यूं तक    सबि कोशिश करदन  पर मनखि नि बींगि सकदु कैकि भि भाषा  धरति, अगास, आग, हवा अर पाणि  बच्याण चंदिन मनखि दगड़  पर मनखि अफु से भैर नि आंद  शायद वु वूंकि भाषा बिंगण नि चांद    वे तैं पसंद छ —  भाषा का प्राकृतिक रूप तैं बदलण अपणा अनुसार  वु समाण चाणू छ सभ्यूं तैं अफु मा  पर कैमा समाण नि चांद  वु महसूस नि कैर सकद हैंकि भाषा कु सौंदर्य  प्रकृति वे तैं बिंगाणी रांद  अर वेकु अहसास अधूरु रै जांद.      Copyright © सतीश रावत  28/03/2020 गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satis

गढ़वळि कविता, -64-, अपणि भाषा

 अपणि भाषा  ----------------  वु धन्य छन  जु बिंडि भाषा जणदन  अपणि भाषा कि डाळि मा खड़ा ह्वेकि हैंकि भाषा लफ्यांदन  अर वूँ पर अपणु अधिकार रखदन  पर अपणा जलड़ा नि छुडदन. वु धन्य छन  जु अंगुळि पकड़ण वळौं का कंधौं तैं पकड़ी चलदन  अर आधुनिकता अर परंपराओं का बीचौ पुळ बण जांदन.           वु धन्य छन  जु अपणि भाषा मा सुचदन अर महसूस करदन  अर अपणि भाषा कि खुसबु औरि भाषाओं तक पौंछादन.  वु धन्य छन  जु अपणि भाषा मा हँसदन  अपणि भाषा मा रोंदन  अर अपणि भाषा मा सुपन्य दिखदन.  Copyright © सतीश रावत  05/04/2020 गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satish Rawat, सतीश रावत, नौड़ियाल गाँव, कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, भारत, Satish Rawat, Nauriyal Gaon, Kapholsyun, Pauri Garhwal, Uttarakhand, India, गढ़वळि साहित्य, गढ़वाली साहित्य, Garhwali Literature, गढ़वळि साहित्य कवि, गढ़वळि साहित्य कवि, Garhwali Literature Poets, गढ़वळि साहित्य लेखक, गढ़

गढ़वळि कविता, -63-, जलडा़

  जलडा़ --------  जलडा़ जमीना ताळ दब्यां रंदन  अर दुनिया तैं अपणा गिचा मिंया मिट्ठु बणदा दिखणा रंदन  वु माटा तैं पकड़ी रखदन  अर प्रकृति का गैणौं तैं थामी रखदन   वु धरति तैं बचैकि रखदन  अर माटा तैं थामी संस्कृति बचंदन   वु माटा तैं माटा से अलग नि होण देंदन  डाळौं पर अंग्वाळ बोटी रखदन  डाळौं तैं खाणु खलंदन, पाणि पिलंदन  पाळि-पोसी बड़ा करदन  सैरि दुनिया तैं उज्यळु देंदन  अर अफु अंध्यरा मा रंदन  जलड़ा सरि सृष्टि तैं थामी रखदन  पर जलड़ा कै तैं नि दिखेंदन. Copyright © सतीश रावत  14/06/2020   Tags for Poems, Garhwali - गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satish Rawat, सतीश रावत, नौड़ियाल गाँव, कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, भारत, Satish Rawat, Nauriyal Gaon, Kapholsyun, Pauri Garhwal, Uttarakhand, India, गढ़वळि साहित्य, गढ़वाली साहित्य, Garhwali Literature, गढ़वळि साहित्य कवि, गढ़वळि साहित

गढ़वळि कविता, -62-, आभास

  -62- आभास   ----------- घाम चमकणू   पर सूरज नी छ,    जून चमकणी  पर जून नी छ,    कुयेड़ि लौंकी  पर कुयेड़ि नी छ,    बरखा लगीं पर बरखा नी छ,    चखुलि उड़णी  पर चखुलि नि छन,    फूल हंसणान  पर फूल नि छन,    पुंगड़ि बयेणी  पर पुंगड़ि नि छन,    अहसास छ होणू  अहसास कु क्य कन ! Copyright © सतीश रावत   10/03/2020   Tags for Poems, Garhwali - गढ़वळि कविता, गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems, सतीश रावत, Satish Rawat, सतीश रावत कि कविता, सतीश रावत की कविताएं, Poems of Satish Rawat, सतीश रावत कि गढ़वळि कविता, सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं, Garhwali Poems of Satish Rawat, सतीश रावत, नौड़ियाल गाँव, कफोलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड, भारत, Satish Rawat, Nauriyal Gaon, Kapholsyun, Pauri Garhwal, Uttarakhand, India, गढ़वळि साहित्य, गढ़वाली साहित्य, Garhwali Literature, गढ़वळि साहित्य कवि, गढ़वळि साहित्य कवि, Garhwali Literature Poets, गढ़वळि साहित्य लेखक, गढ़वाली साहित्य लेखक, Garhwali Literature Writers, गढ़वळि कवि, गढ़वाली कवि, Garhwali Poets, गढ़वळि लेखक, गढ़वाली लेख